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AMRITA DEVI
जोधपुर महाराजा ने जब अपनी जरूरत के लिए सैनिको को पेड़ काटने भेजा तो क्षेत्र की जनता ने प्रतिरोध किया और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी दी |अमृता देवी ने अपनी तीन बेटियों के साथ अपने प्राण त्याग दिए लेकिन पेड़ों को बचाने का प्रण नहीं छोड़ा| दुनिया के इतिहास में पर्यावरण प्रेम की इससे अदभुत कहानी कहीं देखने को नहीं मिलेगी |
PANNA DAI
पन्नाधाय उदयपुर मेवाड़ राजघराने की धाय माता थी |उन्होंने बनवीर से राजकुमार की रक्षा के लिए अपने बेटे की बलि दे कर राजकुमार की रक्षा की और देश के लिए कर्तव्य परायणता का सर्वोत्तम बलिदान देकर अद्भुत संदेश दिया | इतिहास में राष्ट्रीय कर्तव्य निभाते हुए अपने पुत्र को अपने हाथों बलिदान करने की अनोखी गाथा अद्वितीय है
HADI RANI
हाड़ी रानी भारत में राजस्थान की एक लोक नायिका थी। किंवदंतियों का कहना है कि वह मेवाड़ में सलूम्बर के चुंडावत सरदार से विवाहित एक हाडा राजपूत की बेटी थी, जिसने अपने पति को युद्ध में जाने के लिए प्रेरित करने के लिए खुद को बलिदान कर दिया था। जब मेवाड़ के महाराणा राज सिंह I (1653-1680) ने अपने बेटे को औरंगजेब के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए बुलाया, तो कुछ दिन पहले ही विवाह होने के कारण बेटा युद्ध में जाने से हिचकिचाया। उन्होंने अपनी पत्नी हाड़ी रानी से कुछ स्मृति चिन्ह अपने साथ युद्ध के मैदान में ले जाने के लिए कहा। यह सोचकर कि वह मेवाड़ के लिए अपने कर्तव्य करने में बाधा बन रही है, हाड़ी रानी ने अपना सिर काटकर एक प्लेट में रख दिया और अपने पति के सामने पेश करने को कहा। बेटे ने बालो के द्वारा स्मृति चिन्ह बाँधाकर वह बहादुरी से लड़े, औरंगज़ेब की सेना पर जीत दर्ज की |
KARMA BAI
कर्माबाई (20 जनवरी 1615 - 1634) को भक्त शिरोमणि कर्माबाई के नाम से जाना जाता है, उनका जन्म 20 जनवरी 1615 को नागौर जिले के कालवा गाँव में जीवानजी डूडी के परिवार में हुआ था। कर्माबाई के पिता कृष्ण के भक्त थे उन्हें एक बार किसी काम से बाहर जाना पड़ा इसलिए उन्होंने कर्माबाई को प्रभु को भोजन अर्पित करने के लिए बोला और उसके बाद ही भोजन करने का निर्देश दिया । उन्होंने यह निर्देश शाब्दिक रूप से लिया। अगली सुबह वह जल्दी उठी और भगवान को चढ़ाने के लिए भोजन बनाया, लेकिन जब उन्होंने देखा कि भगवान भोजन नहीं कर रहे है, तो अपने पिता के निर्देशों के प्रति ईमानदार निर्दोष कर्माबाई ने खुद भी भोजन नहीं किया और पहले भगवान के आकर खाना खाने का इंतजार किया। भगवान श्रीकृष्ण उसके निश्चय से बहुत प्रभावित हुए और खुद उनके सामने उपस्थित होकर भोजन ग्रहण किया । जब उसके पिता लोट कर वापिस आये तो उसने उन्हें सब कुछ बताया, उसके पिता अविश्वास में हैरान थे और इस तरह कर्मा बाई ने उन्हें सच साबित करने के लिए एक बार फिर से प्रकट होने का निवेदन किया। भगवान कृष्ण अपने भक्त के सम्मान को बनाए रखने के लिए एक बार फिर प्रकट हुए।